My Story : "विज्ञान का सुख या प्रकृति का आनंद"



लघु कथा 
"निशा चाय बन गयी क्या ?" राकेश ने अखबार से नजर हटाकर कहा। "नहीं आज अच्छा मौसम लग रहा है, बादल भी है और मिट्टी की महक भी है लगता है पानी बरसेगा इसलिए पकौड़ी बना रही हूँ। बना दूँ क्या? चाय में थोड़ी देर लगेगी।" निशा ने कहा। 
"नेकी और पूँछ पूँछ ये भी कोई पूँछने की बात है" और वह अखवार पढ़ने में मग्न हो गया। 
उधर निशा नाश्ता तैयार करने में लग गयी। तभी बादलों के गरजने की आवाज तेज हुई और पानी जोरों से बरसने लगा। जैसे ही बारिश की ठंडी हवा अखबार को धकेलती हुई राकेश के चेहरे को छूने लगी तभी राकेश अखबार टेबल पर पटक कर बालकनी की ओर दौड़ा।आज बाहर का नजारा बेहद सुंदर था। हालाँकि बारिश पहली बार नहीं हो रही थी, हर बार की तरह उतनी ही आकर्षक थी, पर आज छुट्टी थी और दुनिया भी कामों से दूर मन आजादी से मौसम का आनंद ले पा रहा था।
धरती पर पड़ती बूँदें ऐसी लग रही थी मानो, बिरह में तड़पती प्रेयसी ने अपने पिया के लिए बाहें फैला दी हों। पेड़ों पर पड़ती बूँदों का अलग ही संगीत था। जैसे बारिश की ताल पर पौधों की पत्ती पत्ती नृत्य कर रही हो। हर पत्ता आईने की तरह चमक रहा था। कहीं कहीं तो बारिश की बूँदें टकरा कर बाउंस हो रही थी।जैसे पकड़म पकड़ाई खेल खेल ही हो धरती के हर कण के साथ।  "नाश्ता तैयार है " की आवाज से राकेश का ध्यान हटा।और उसकी सारी कल्पनाओं को विराम लगा। 
चाय और पकौड़ें टेबल पर सजाते हुए निशा, राकेश का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। अखबार वहीं टेबल पर उदास पड़ा था। राकेश और निशा दोनों चाय पीने लगे और पकौड़ों का मजा लेने लगे। अखबार पर एक बार भी किसी कि नजर नही गयी। 
अाज अखबार की चटपटी,मसालेदार,तीखी और धमाकेदार खबरें उनका ध्यान नहीं खींच पा रही थी।शायद बारिश की हवा में कहीं गुमशुदा हो गयी थीं ।चाय का कप भी आज बहुत खुश था और अखबार को देखकर इतरा रहा था। आज उसका दिन था रोज तो अखबार कि खबरों के बीच बिन देखे उसे टटोला जाता था, पर आज अखबार बेसुध सा पड़ा था। 
ए.सी., कुलर, पंखा जो अभी तब अपने आप को किसी गवर्नर से कम नहीं समझते थे। आज सब चुप पड़े थे। पंखा तो गरम हवा फैंक कर भी अपने आप को सुपर मैन समझता था। पर बारिश के आगे सब ठप। सबके मुँह बंद। 
"कितनी अच्छी हवा चल रही है और हवा में ये हल्की हल्की बारिश की बौछारें कितनी सुहावनी लग रही हैं। चलो ना बाहर "निशा राकेश का हाथ पकड़ कर बालकनी में ले आती है। और अपना हाथ बालकनी से बाहर निकाल कर बारिश में भीगने देती है। अलग ही खुशी है दोनों के चहरे पर। राकेश की मुस्कान निशा की खुशी को देखकर कर बढ़ जाती है। इधर दोनों एक दुसरे में मग्न है।
 प्रकृति बनाम तकनीकी की प्रतिस्पर्धा से बेखवर। उधर मौसम भी मस्त है, विज्ञान और तकनीकी को उसका सा मुँह दिखा कर। :-)
अगर मौसम की खूबसूरती आपने मेरे शब्दों में महसूस की हो तो प्लीज मुझे फॉलो कीजिए और अपने प्यारे-प्यारे कमेंट के साथ मेरे साथ बने रहिए।
 धन्यवाद

Comments

Popular posts from this blog

2कविताऐं "सपने"

नारी शक्ति को दर्शाति कविता : तुम बिन

Mom Feels: "Scores of Blessings" (दुआओं की अंक तालिका)