My Story : Cycle
यार तन्मय मुझे एक बात बता, "ये जो नई लड़की अपनी क्लास में आई है, क्या नाम उसका?"
चेतन ने अपना टिफिन बॉक्स मेरी तरफ सरकाते हुए मुझसे पूछा।
मैंने भी बॉक्स उठाते हुए जवाब दिया : "कौन? शिखा!"
चेतन ने अपना टिफिन बॉक्स मेरी तरफ सरकाते हुए मुझसे पूछा।
मैंने भी बॉक्स उठाते हुए जवाब दिया : "कौन? शिखा!"
"हाँ वही शिखा।" तुझे कैसी लगती है? चेतन का सवाल सुनकर मैं कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गया,
मैं उसकी इस बात का कुछ जवाब देता उससे पहले ही उसने अपनी बात जारी रखते हुए कहा :
"मुझे तो बहुत घमंडी सी लगती है, ना किसी से बात करती है और ना ही क्लास में किसी के साथ घूमती है,
बस हमेशा अकेले रहती है"।
मैं उसकी इस बात का कुछ जवाब देता उससे पहले ही उसने अपनी बात जारी रखते हुए कहा :
"मुझे तो बहुत घमंडी सी लगती है, ना किसी से बात करती है और ना ही क्लास में किसी के साथ घूमती है,
बस हमेशा अकेले रहती है"।
"नहीं यार, ऐसा नहीं है! वो अभी इस स्कूल में नई है, शायद इसीलिए"।
"काहे कि नई! स्कूल खुले १ महीना हो गया, मासिक टेस्ट भी हो गए, अब तक तो सब नए पुराने हो चुके यार,
चेतन बोला।
चेतन बोला।
तन्मय : "बात तो तू ठीक कह रहा है पर उसे किस बात का घमंड होगा?"
चेतन : "अपने टोपर होने का"।
तन्मय : "टोपर!
(मुझे चेतन की बात सुनकर थोड़ा आश्चर्य हुआ।)
चेतन : "हाँ, क्लास ८ में उसने पूरे जिले में टॉप किया है, बस इसी बात का घमंड होगा"।
तन्मय : देखने में वो पढ़ाकू लगती ज़रूर है, पर इस बात का उसे घमंड है, ऐसा लगता नहीं!
चेतन : तो और क्या बात होगी?
ला टिफ़िन इधर ला (चेतन तन्मय के सामने से टिफिन अपनी ओर खिसकाते हुए बोला)
"पता नहीं यार कुछ लोग होते हैं जिन्हें कम बोलना पसंद होता है, दोस्त भी कम ही बना पते है",
तन्मय शालीनता से बोला।
तन्मय शालीनता से बोला।
"वैसे उसने कभी तेरे साथ बात की क्या? तू भी तो इस स्कूल का टोपर है न", हा हा हा ही ही ही,
चेतन ने तन्मय को चिढ़ाते हुए एक शरारती हंसी हंसते हुए पूछा।
चेतन ने तन्मय को चिढ़ाते हुए एक शरारती हंसी हंसते हुए पूछा।
तन्मय : "टोपर हूँ नहीं था अब तो वो है"
(इस बात पर दोनों दोस्त जोर से हँसने लगे)
हंसते-हंसते अनायास ही चेतन ने उनमें से पूछा : "तुझे शिखा पसंद है ना?"
"नहीं तो, तू ऐसा क्यूं पूछ रहा है", तन्मय ने बड़ी ही चालाकी से अपने दिल की बात छुपाते हुए कहा।
"झूठ मत बोल मैंने कई बार तुझे उसको नज़ारे चुराकर देखते हुए देखा है", चेतन ने दृढ़ स्वर में कहा।
तन्मय : "नहीं यार ऐसा कुछ भी नहीं है"।
टन टन टन . . . . . . . .
तभी स्कूल की घंटी बज गई और लंच ब्रेक ख़त्म हो गया, दोनों दोस्त क्लास की ओर चल दिए।
तभी स्कूल की घंटी बज गई और लंच ब्रेक ख़त्म हो गया, दोनों दोस्त क्लास की ओर चल दिए।
कक्षा में सभी बड़ी बेसब्री से शर्मा सर का इंतज़ार कर रहे थे। शर्मा सर आज गणित के टेस्ट का
रिजल्ट बताने वाले थे। थोड़ी ही देर में शर्मा सर अपने हाथों में सभी छात्रों की उत्तर पत्रिकाओं के
साथ कक्षा में प्रवेश किया।
रिजल्ट बताने वाले थे। थोड़ी ही देर में शर्मा सर अपने हाथों में सभी छात्रों की उत्तर पत्रिकाओं के
साथ कक्षा में प्रवेश किया।
शर्मा सर कक्षा को संबोधित करते हुए बोले : "बच्चों मैं आज बहुत खुश हूँ, सभी छात्र इस परीक्षा में पास हुए हैं,
कोई भी फैल नहीं हुआ, पर हाँ जिन छात्रों के नंबर थोड़े कम आये हैं उन्हें और भी मेहनत करने की ज़रुरत है।
कोई भी फैल नहीं हुआ, पर हाँ जिन छात्रों के नंबर थोड़े कम आये हैं उन्हें और भी मेहनत करने की ज़रुरत है।
शर्मा सर एक एक करके सभी छात्रों के अंक बताने लगे। थोड़ी ही देर में सभी छात्रों को उनके अंक पता लग गए थे,
सिवाए तन्मय और शिखा के। शर्मा सर ने आदत तन आज भी सबसे अधिक अंक लाने वाले छात्रों के नाम सबसे
अंत में बताने के लिए रोक रखे थे।
सिवाए तन्मय और शिखा के। शर्मा सर ने आदत तन आज भी सबसे अधिक अंक लाने वाले छात्रों के नाम सबसे
अंत में बताने के लिए रोक रखे थे।
उत्सुकता वश तन्मय और शिखा के मन में सवाल उठ रहा था कि दोनों में से किसके अंक अधिक होंगे?
हालांकि शिखा को शर्मा सर की इस आदत का पता नहीं था कि वह सबसे कम से शुरू करके सबसे अधिक
अंक लाने वाले छात्र का नाम सबसे अंत में बताते हैं।
हालांकि शिखा को शर्मा सर की इस आदत का पता नहीं था कि वह सबसे कम से शुरू करके सबसे अधिक
अंक लाने वाले छात्र का नाम सबसे अंत में बताते हैं।
तभी सर ने शिखा का नाम लिया।
शर्मा सर : "शिखा! ९/१०"।
शिखा बहुत खुश थी क्योंकि अब तक के क्लास में सबसे अधिक अंक उसी के थे।
तन्मय अब मन ही मन खुश था, आखिर में उसका नाम आने के कारण वह मान रहा था कि शायद उसके अंक
शिखा से भी अधिक होंगे।
तन्मय अब मन ही मन खुश था, आखिर में उसका नाम आने के कारण वह मान रहा था कि शायद उसके अंक
शिखा से भी अधिक होंगे।
तभी सर ने तन्मय का नाम लिया।
शर्मा सर : "तन्मय ९/१०"।
माना कि तन्मय ने कक्षा में सबसे अधिक नंबर नहीं लिए थे लेकिन किसी से कम भी नहीं थे।
जब सर ने तन्मय के अंक सुनाए तब शिखा पहली बार तन्मय की ओर देखकर हल्का सा मुस्कुराई।
तन्मय की नजर भी शिखा की ओर ही थी और तन्मय ने भी शिखा को पलट कर मुस्कुराहट का जवाब मुस्कुराहट
में दिया, और मन ही मन लालाहित हो उठा।
जब सर ने तन्मय के अंक सुनाए तब शिखा पहली बार तन्मय की ओर देखकर हल्का सा मुस्कुराई।
तन्मय की नजर भी शिखा की ओर ही थी और तन्मय ने भी शिखा को पलट कर मुस्कुराहट का जवाब मुस्कुराहट
में दिया, और मन ही मन लालाहित हो उठा।
शर्मा सर सारी कक्षा को संबोधित करते हुए बोले : "बच्चों आज हम एक दूसरे के बारे में जानेंगे,
कुछ लोग इस क्लास में नए हैं कृपया बिगड़े होकर अपना परिचय दें। पुराने विद्यार्थियों से मैं आग्रह करूंगा की
नए साथियों का सहयोग करें और एक अच्छी क्लास वही होती है जो एक दूसरे की मदद करे और
उनका ख्याल रखे।
कुछ लोग इस क्लास में नए हैं कृपया बिगड़े होकर अपना परिचय दें। पुराने विद्यार्थियों से मैं आग्रह करूंगा की
नए साथियों का सहयोग करें और एक अच्छी क्लास वही होती है जो एक दूसरे की मदद करे और
उनका ख्याल रखे।
तो हम शिखा से शुरू करते हैं। शिखा सबसे पहले तुम अपने बारे में बताओ!
शिखा अपनी जगह पर खड़ी हुई और अपने बारे में बताने लगी।
उसकी बातों में एक अजीब सा खालीपन था, आवाज़ में कशिश और
आँखों में एक गहरी ख़ामोशी थी।
उसने अपने बारे में कईं बाते बताई पर जब उसने बताया की
उसे साइकिल चलना पसंद है उसे बड़ा होकर साइकिलिस्ट बनना है
तो उसकी आवाज़ जैसे किसी रोमांच से भर गया
और आँखों में अलग सी चमक दिखाई दी।
वो पल मेरे ज़हन में मानो कैद हो गया।
आँखों में एक गहरी ख़ामोशी थी।
उसने अपने बारे में कईं बाते बताई पर जब उसने बताया की
उसे साइकिल चलना पसंद है उसे बड़ा होकर साइकिलिस्ट बनना है
तो उसकी आवाज़ जैसे किसी रोमांच से भर गया
और आँखों में अलग सी चमक दिखाई दी।
वो पल मेरे ज़हन में मानो कैद हो गया।
उस शाम तन्मय स्कूल से घर पहुंचा और पहुंचते ही सबसे पहले अपनी मां से जाकर लिपट गया।
मां ने भी बड़े दुलारे को गले से लगाया और मुझे प्यार करने लगी।
मां ने भी बड़े दुलारे को गले से लगाया और मुझे प्यार करने लगी।
तन्मय ने लाडली स्वर में अपनी मां से कहा: "मां आपने कहा था ना कि अगर मैं स्कूल में टॉप करूँगा
तो मुझे आप साईकिल दिलाओगी।
गर्मी की छुट्टियाँ भी निकल गई अब तो दिला दो ना।
तो मुझे आप साईकिल दिलाओगी।
गर्मी की छुट्टियाँ भी निकल गई अब तो दिला दो ना।
तन्मय की मां ने उत्साहित स्वर से अपने बेटे को कहा : मैं आज ही तेरे पापा से बात करुँगी और
जल्द ही मेरे बेटे के पास साईकिल होगी, चल अब जल्दी से कुछ खा ले।
जल्द ही मेरे बेटे के पास साईकिल होगी, चल अब जल्दी से कुछ खा ले।
१० दिनों की ज़िद्द और नाराज़गी के बाद आखिरकार तन्मय ने
अपने माता पिता से साईकिल पाने में सफल हो गया।
अपने माता पिता से साईकिल पाने में सफल हो गया।
नई साईकिल से आज स्कूल में तन्मय का पहला दिन था,
इसलिए वह पूरी कक्षा के लिए चॉकलेट्स लेकर पहुंचा।
एक सच्चा दोस्त वही होता है जो आपकी ख़ुशी में आपसे भी ज्यादा खुश हो।
स्कूल पहुँचते ही चेतन ने साईकिल से स्कूल के २ चक्कर लगाए
और फिर पूरी कक्षा में चॉकलेट्स भी उसी ने बांटी।
खा ने चॉकलेट लेते वक़्त जब चेतन से पूछा की किस ख़ुशी में चॉकलेट बांटीजा रही है
तो चेतन ने तन्मय की नई साइकिल के बारे में बताया।
इसलिए वह पूरी कक्षा के लिए चॉकलेट्स लेकर पहुंचा।
एक सच्चा दोस्त वही होता है जो आपकी ख़ुशी में आपसे भी ज्यादा खुश हो।
स्कूल पहुँचते ही चेतन ने साईकिल से स्कूल के २ चक्कर लगाए
और फिर पूरी कक्षा में चॉकलेट्स भी उसी ने बांटी।
खा ने चॉकलेट लेते वक़्त जब चेतन से पूछा की किस ख़ुशी में चॉकलेट बांटीजा रही है
तो चेतन ने तन्मय की नई साइकिल के बारे में बताया।
शिखा ने तुरंत ही तन्मय के पास पहुँचकर उसे उसकी नई साइकिल के लिए बधाई दी,
तन में भी मानो इसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।
तन में भी मानो इसी पल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।
स्कूल ख़त्म होने के बाद सब अपने अपने घर को निकल गए।
शिखा हर रोज की तरह आज भी अकेले ही अपने घर की ओर जा रही थी,
तभी तन्मय ने उसके पास जाकर अपनी साईकिल रोक दी।
वह तन्मय को देखकर थोड़ा चौंक सी गई पर बिना कुछ बोले कुछ देर उसकी ओर देखती रही।
तन्मय झट से साईकिल से उतरा, स्टैंड पर लगाकर उसके सामने जा खड़ा हो गया।
शिखा हर रोज की तरह आज भी अकेले ही अपने घर की ओर जा रही थी,
तभी तन्मय ने उसके पास जाकर अपनी साईकिल रोक दी।
वह तन्मय को देखकर थोड़ा चौंक सी गई पर बिना कुछ बोले कुछ देर उसकी ओर देखती रही।
तन्मय झट से साईकिल से उतरा, स्टैंड पर लगाकर उसके सामने जा खड़ा हो गया।
मुझसे दोस्ती करोगी? : तन्मय ने अपना हाथ उसकी और बढ़ाते हुए पूछा।
मैं अगर तुम्हारी दोस्त बन जाऊं तो क्या तुम मुझे साईकिल चलाने दोगे? : शिखा ने उत्सुकता से पूछा।
तन्मय : हाँ-हाँ क्यों नहीं! फिर ये भी तो तुम्हारी दोस्त बन जाएगी, जब चाहो तब चलना।
शिखा : फिर ठीक है। मुस्कुराते हुए अपना हाथ अपना हाथ तक में की और बढ़ा देती है।
आज तकरीबन १५ साल बाद जब वही साईकिल बेचने का वक़्त आया
तो आँख खुद-ब-खुद ही भर आई, और सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गई।
साईकिल का ख़रीदार उसे तन्मय से दूर लेकर जा रहा था
और वो खड़ा बस पुरानी यादों को अपने ज़हन में समेटे
उसे जाते हुए देख रहा था। तभी शिखा ने पीछे से आकर उसका हाथ पकड़ा
और कंधे पर अपना सर रखकर साईकिल को जाते हुए देखने लगी।
आज तन्मय और शिखा से उनके एक होने की वजह बिछड़ रही थी पर वे दोनों उम्र भर के लिए जुड़ चुके थे।
तो आँख खुद-ब-खुद ही भर आई, और सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गई।
साईकिल का ख़रीदार उसे तन्मय से दूर लेकर जा रहा था
और वो खड़ा बस पुरानी यादों को अपने ज़हन में समेटे
उसे जाते हुए देख रहा था। तभी शिखा ने पीछे से आकर उसका हाथ पकड़ा
और कंधे पर अपना सर रखकर साईकिल को जाते हुए देखने लगी।
आज तन्मय और शिखा से उनके एक होने की वजह बिछड़ रही थी पर वे दोनों उम्र भर के लिए जुड़ चुके थे।
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