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My Story : Cycle

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साईकिल यार तन्मय मुझे एक बात बता, "ये जो नई लड़की अपनी क्लास में आई है, क्या नाम उसका?" चेतन ने अपना टिफिन बॉक्स मेरी तरफ सरकाते हुए मुझसे पूछा। मैंने भी बॉक्स उठाते हुए जवाब दिया : "कौन? शिखा!" "हाँ वही शिखा।" तुझे कैसी लगती है? चेतन का सवाल सुनकर मैं कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गया, मैं उसकी इस बात का कुछ जवाब देता उससे पहले ही उसने अपनी बात जारी रखते हुए कहा : "मुझे तो बहुत घमंडी सी लगती है, ना किसी से बात करती है और ना ही क्लास में किसी के साथ घूमती है, बस हमेशा अकेले रहती है"। "नहीं यार, ऐसा नहीं है! वो अभी इस स्कूल में नई है, शायद इसीलिए"। "काहे कि नई! स्कूल खुले १ महीना हो गया, मासिक टेस्ट भी हो गए, अब तक तो सब नए पुराने हो चुके यार, चेतन बोला। तन्मय : "बात तो तू ठीक कह रहा है पर उसे किस बात का घमंड होगा?"  चेतन : "अपने टोपर होने का"। तन्मय : "टोपर!   (मुझे चेतन की बात सुनकर थोड़ा आश्चर्य हुआ।) चेतन : "हाँ, क्लास ८ में उसने पूरे जिले में टॉप किया है, बस इसी बात का घमंड होग...

A True Story "आत्म बल"

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आत्म बल सामान्यतः जब हम किसी को हाथ, पैर या अन्य किसी अंग के बगैर देखते हैं, तो उन्हें अपंग या अपाहिज मान लेते हैं। पर कई दफा इनसान की इच्छा शक्ति उससे वह करवा लेती है जो सही सलामत दिखने वाले भी नहीं कर पाते। मेरे पापा बचपन से ही अपने बाएँ पैर से विकलांग थे। एक दुर्घटना में उनकी हिप बोन टूट गई थी। अनेक इलाज के बाद अन्ततः उनका बाया पैर दाएँ पैर की तुलना में करीब 3इंच छोटा और कमज़ोर था। ये कहानी है 1990 की, जून का महीना जब भीषण गरमी की चिलचिलाती दोपहर में सुनसान रास्तों पर कोई कोई ही नज़र आता है। शनिवार का दिन था, पापा का ऑफिस 2:30 बजे बंद हो जाता था। उस दिन मम्मी को बाज़ार में कुछ काम था, टाइम पर सब खत्म करके वह भी सीधा ऑफिस पहुँच गईं थीं ताकी दोनों साथ ही घर लौट सकें। दोनों स्कूटर पर सवार अपने घर की ओर चल पड़े। सिविल लाइन्स कॉलोनी से गुज़रते हुए पापा ने सामने से एक 11-12 साल की बच्ची को देखा, जो घबराई सी दौड़ी आ रही थी और उसके पीछे एक बौराया सा बैल आवाज़ें निकालता चला आ रहा था। पापा ने आव देखा ना ताव स्कूटर साईड पे लगाया और बच्ची को अपनी ओर खींचा और मम्मी को बोल कर उसे सड़क के म...