A True Story "आत्म बल"
आत्म बल
सामान्यतः जब हम किसी को हाथ, पैर या अन्य किसी अंग के बगैर देखते हैं, तो उन्हें अपंग या अपाहिज मान लेते हैं। पर कई दफा इनसान की इच्छा शक्ति उससे वह करवा लेती है जो सही सलामत दिखने वाले भी नहीं कर पाते। मेरे पापा बचपन से ही अपने बाएँ पैर से विकलांग थे। एक दुर्घटना में उनकी हिप बोन टूट गई थी। अनेक इलाज के बाद अन्ततः उनका बाया पैर दाएँ पैर की तुलना में करीब 3इंच छोटा और कमज़ोर था।
ये कहानी है 1990 की, जून का महीना जब भीषण गरमी की चिलचिलाती दोपहर में सुनसान रास्तों पर कोई कोई ही नज़र आता है। शनिवार का दिन था, पापा का ऑफिस 2:30 बजे बंद हो जाता था। उस दिन मम्मी को बाज़ार में कुछ काम था, टाइम पर सब खत्म करके वह भी सीधा ऑफिस पहुँच गईं थीं ताकी दोनों साथ ही घर लौट सकें। दोनों स्कूटर पर सवार अपने घर की ओर चल पड़े।
सिविल लाइन्स कॉलोनी से गुज़रते हुए पापा ने सामने से एक 11-12 साल की बच्ची को देखा, जो घबराई सी दौड़ी आ रही थी और उसके पीछे एक बौराया सा बैल आवाज़ें निकालता चला आ रहा था। पापा ने आव देखा ना ताव स्कूटर साईड पे लगाया और बच्ची को अपनी ओर खींचा और मम्मी को बोल कर उसे सड़क के मोड़ तक छुड़वा दिया। जब मम्मी लौट के आईं तो सामने का नज़ारा देख कर उनकी आँखें चक्करा गईं। बच्ची के हटते ही बैल पापा की ओर बढ़ गया था। पापा ने उसके दोनों सींग अपने दोनों हाथों से कस के पकड़ लिए थे, खुद को छुड़ाने के लिए जब बैल ने अपना सिर ज़ोर ज़ोर से हिलाया तो पापा फिसल कर बैल के नीचे ज़मीन पर गिर गए, उन्होंने बैल के सींग नहीं छोड़े। अब बैल अपने पिछले पैर उछालने लगा तब पापा ने अपने पैरो से उसका एक पिछला पैर जकड़ लिया। बैल को काबू में रखने का यही तरीका था। इन सब के चलते पापा की पगड़ी गिर गई थी, बैल के सींग से दाढ़ी के पास चोट लगी और खून बहने लगा था। गिरने की वजह से कोहनी और हाथों से भी खून आ रहा था।
अब यहाँ आने जाने वालों की भीड़ जमा हो गई थी। कुछ लोग ज़ोर ज़ोर से बोलने लगे तो कुछ बैल को ही मारने लगे। ऐसे में बैल बेचैन होने लगा और अब पापा का उस शक्तिशाली पशु पर काबू पाना मुश्किल हो गया।
तब उन्होंने चिल्ला कर बताया कि कोई रस्सी लाऔ और इस बैल को कहीं बाँधो। मम्मी और कुछ व्यक्तियों ने आसपास के घरों को खुलवाया और रस्सी का इन्तज़ाम किया। बैल को पास के पेड़ से कस बाँध दिया, तब जाकर पापा को बैल से आज़ादी मिली। सभी ने तालियाँ बजा कर पापा मम्मी की बहादुरी को प्रोत्साहन दिया।
वन्य विभाग से समर्पक करके बैल को उसकी सही जगह भिजवाया गया। पापा को नजदीकी डाक्टर से बैन्डेज करवाई गई।
इस साहस पूर्ण कार्य के लिये मेरे पिता सरदार गुरमीत सिंह मैनी को तत्कालीन राष्ट्रपति जी द्वारा राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित किया गया।
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