घर की धूल
घर की धूल
*चमकती धूप में जब कभी देखा अपनी हथेली को,
कम नहीं पाया किसी से भी इन लकीरों को,
*कुछ कमी तो रह गई फिर भी नसीब में मेरे,
ठोकरें खाता रहा मन हर कदम तकदीर से!
*हर सुबह लाती है मुझमें, इक नया सा हौंसला,
हिम्मतें उठती हैं फिर लेने को कोई फैसला,
*ये भी करलूँ, वो भी करलूँ, जी लूं अपने आप में,
कोई मजबूरी या बंधन रोके ना अब राह में,
*साथ चढ़ते सूर्य के फर्ज़ भी बढ़ता गया,
जिम्मेदारियों की लय में दिन भी ढलता गया,
*मैं मेरे सपनों के भीतर यूं ही उलझी रही,
शाम आते ही अरमानों का रंग भी उड़ गया
*बहुत कड़वा है ये अनुभव सोच और सच्चाई का,
दोष किसका है यहाँ पर, केवल अपने आप का,
*क्यों ये सोचा कोई आकर मेरे लिए सब लाएगा,
क्यों न सोचा मैं ही चलकर खुद ही सब ले लाऊँगी
*कर रही हूं हद से बढ़ कर, मूल्य जिसका कुछ नहीं,
मूल्य क्या कोई भरेगा, जो भी है अनमोल है,
*फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है
फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है ।।
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