मंजिल


  मंजिल यूँ ही नहीं मिलती राही को
      जुनून दिल में जगाना पड़ता है,
पूछा हमने ये हर शै से कि,
      सफर में क्या क्या होता है
पूछा चिड़िया से हमने कि,
       ये घोंसला कैसे बनता है?
वो बोली दम भरकर इक पल कि,
       तिनका तिनका उठाना पड़ता है।
माँ से पूछा हमने इक रोज़ कि,
      ये बालक कैसे पलता है?
नम करके आँखें वो बोली,
     अपने लहू से सींचना पड़ता है।
चींटी का सफर भी कहाँ कम है
       गिर गिरके उठना पड़ता है
किसान को भी निज खेतों में
       अग्नि सा जलना पड़ता है
मंजिल यूँ ही नहीं मिलती राही को,
      जुनून दिल में जगाना पड़ता है।।

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