हिन्दी कविता "उमंग"


उमंग
नई सुबह की नई किरन ने,
नई सोच को ताकत दी है,
नए ज़माने कि इस लहर में
नई उमंगों को राह दी है ..

और भी रहें तकी थी हमने,
कोशिशें भी हज़ार कीं थी
मगर वही है यहाँ सिकंदर,
प्रभु  कि जिस पर नज़र पड़ी है

समय की धारा बड़ी प्रबल है,
कोई भी यूँ ही न तर सका है.
पर जोश अपना भी कहाँ कम है,
रोज लड़े है, ज़माने भर से

कभी तो मिलेगी मुझे वह किश्ती,
जो पार तक मेरा साथ देगी
मुझे भी अपना आप पा कर
सुकुं मिलेगा फिर झोली भर कर .....

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