Hindi poem "मरीचिका", The Mirage
मरीचिका
*******
•आसमां जितना भी दिखे,
हाथों में समा सकता नहीं
•आईने में अक्स:
चाहे, मैं ही हूँ
फिर भी छुआ जाता नहीं
•ख्वाब जितने भी हों
पलकों के खुलते ही,
मिला करते नहीं
•तमाम उर्म गुज़ार ली सीखने सिखाने में
फिर भी यूं लगता है
मानो अब भी कुछ आता नहीं
•हंसते रहते है हम ज़माने के सामने हरदम
सोचते है सब, कि शायद, रोना हमें आता नहीं
•ऐ रब, कैसी ये अजीब रिवायत है तेरी
जैसा दिखता है,
वैसा कभी होता क्यों नहीं?
Comments
Post a Comment