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Showing posts from September, 2019

भारतीय महिलाओं के लिए बिज़नेस लोन की सुविधाओं पर विस्तृत जानकारी

भारतीय महिलाओं के लिए बिज़नेस लोन की सुविधाओं पर विस्तृत जानकारी सुमन और अनिता रोज़ शाम की तरह आज फिर अपने बच्चों को पार्क में घूमने पहुंची और बच्चों को खेल में व्यस्त करके साथ वाली बेंच पर बैठ कर आपने आपने मोबाइल पर SHEROES app खोलते हुए अनिता ने सुमन से बोली, आज कल भारतीय महिला घर की चार दीवारों से बाहर निकल रही है और स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में अपनी पहचान बना रही है। हाँ तुम सही कह रही हो सुमन ने अनिता का समर्थन देते हुए कहा, ‘मैंने तो ये भी सुना है, आज कल नौकरी पेशा औरतें भी अपनी हाई प्रोफाइल नौकरियों को छोड़ कर खुद के बिज़नेस करके अपने हुनर और अपने दम पर कुछ करने का आनंद लेना चाहतीं हैं।  पढ़ी लिखी समझदार औरतें अपने सपनों को हक़ीक़त में बदलने के लिए खुद के Start Up करना चाहतीं हैं, सुमन ने अनिता को अपने मोबाइल में SHEROES Start-up community दिखाते हुए कहा।  सही बात है अनिता ने चर्चा आगे बढ़ाते हुए कहा, पर व्यवसाय शुरू करने का पहला कदम पूँजी है, कोई भी काम करने के लिए कुछ पैसा तो लगाना पड़ेगा न। हाँ, बिलकुल पर महिलाओं को उद्यमी बनने के लिए प्रेरित करने के लिए, हमारी सरकार कई योजनाएं

My Blog : Hariyali Teej

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 Hara Rang Teej Ka          हमारे देश के अलग-अलग प्रांतों में एक ही त्यौहार (Festivals) को कई तरह से मनाया जाता है। इनसे जुड़ी कुछ बातें हमें किसी से सुनकर या पढ़कर पता लग जाती हैं। तो कुछ हम खुद अनुभव करते हैं, और यदि हमें सचमुच एक ही त्यौहार को अलग-अलग जगह पर अनुभव करने का मौका मिले तो उस का आनंद ही कुछ और है। इस संदर्भ में मैं अपने आप को कुछ सौभाग्यशाली मानती हूं, क्योंकि मुझे भारत के कई राज्यों में रहने और उनके त्योहारों को मनाने के बेहतरीन अवसर मिला है। मैं अपने इस blog series (Festivals of India with Raman) में आपके साथ इन्हीं त्योहारों को लेकर अपने कुछ अनुभव share करूंगी। इस लेख में हम राजस्थान और पंजाब में हरियाली तीज के संदर्भ में बात करेंगे।                त्यौहारों में मेल-मिलाप और खुशनुमा चेहरों की रंगत कई दिनों तक हमारे मन में अपनी छवि बनाए रखती है। इसलिए अगले वर्ष फिर हमें इन त्यौहारों का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। त्योहारों की इस लिस्ट में एक त्यौहार हरियाली तीज का भी है। जिसके बारे में इस लेख में हम चर्चा करेंगे।                     मेरा बचपन र

Collection of my poems : Aksss "अक्स (A Reflection of my soul)"

अक्स (A Reflection of my soul) "स्याही की भी मंज़िल का अंदाज देखिए हुजूर, खुद-ब-खुद बिखरती है तो दाग़ बनती है, जब कोई बिखेरता है तो अल्फाज़ बन जाती है।।"             कम शब्दों में बड़ी बात कहने की इस कला को ही हिंदी में कविता, इंग्लिश में पोयम और उर्दू में शायरी कहा जाता है। यह भाषा का ऐसा निराला रूप है जिसे लिखने में जितना मज़ा आता है उतना ही इन्हें पढ़ने और सुनने में आनंद की अनुभूति होती है। सीधे सपाट शब्दों में कही गई बात से ज्यादा खूबसूरत तुकबंदी में कही गई बात में होती है।  इस पुस्तक में मैंने मेरे मन के अक्स को आप सबके सामने प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।  मेरी कविताओं के शीर्षक वैसे तो कुछ आम ही हैं, परंतु इन कविताओं की खासियत यह है कि इन कविताओं के माध्यम से गृहणियों व महिलाओं के मन में के हाल को दर्शाया गया है। उनके विचारों का अक्स आप इन शब्दों की माला में महसूस कर सकेंगे। कविताओं की श्रंखला कुछ सब टाइटल्स द्वारा विभाजित कर प्रस्तुत किया गया है जैसे: वंदन, मंथन, आत्म साक्षात्कार आदि। इन कविताओं की सोच कुछ इस प्रकार है की, जैसे : माँ, इस शब्द पर अनेक कवि

Sikh Guru Sahiban- Miri Piri Diwas

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"मीरी पीरी के मालिक, दाता बंदी छोड़ छेवीं पातशाही श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के प्रकाश पर्व की आप सभी को ढेरों बधाइयां"।। जो लोग नियमित रूप से सिख धर्म से अथवा गुरुद्वारा साहिब की सेवा से जुड़े हैं, वे जानते हैं कि आज के दिन लंगर में मिस्से (बेसन और अन्य अनाजों के मिश्रण से बने ) प्रशादे (रोटी), प्याज़ एवं लस्सी का स्वादिष्ट भोज संगत में परोसा जाएगा। अक्सर लोग त्योहारों को भोजन के नाम से याद रखते हैं जैसे: "मिस्से प्रशादे वाला गुरपुरब" । आज सभी बड़े चाव, श्रद्धा और भाव से इस पवित्र लंगर का आनंद ले रहे हैं। परंतु क्या किसी दिवस का अर्थ केवल स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करना ही है? क्या हमें इस बात से अवगत नहीं होना चाहिए कि यह दिवस हम आखिर मना ही क्यों रहे हैं? इसके अलावा यदि हम थोड़ा संजीदगी से सोचें तो सिख धर्म भारतीय इतिहास का बहुमूल्य हिस्सा है। बहुत छोटे समय के इतिहास और अल्पसंख्यक होने के बावजूद भी सिख समुदाय का भारत एवं भारतीयता के साथ अटूट बंधन रहा है। परंतु विडंबना यह है कि, सिख इतिहास के बारे में औरों को तो क्या स्वयं नई पीढ़ी के सिख बच्चों को भी ज्यादा