Posts

Showing posts with the label House wife

Collection of my poems : Aksss "अक्स (A Reflection of my soul)"

अक्स (A Reflection of my soul) "स्याही की भी मंज़िल का अंदाज देखिए हुजूर, खुद-ब-खुद बिखरती है तो दाग़ बनती है, जब कोई बिखेरता है तो अल्फाज़ बन जाती है।।"             कम शब्दों में बड़ी बात कहने की इस कला को ही हिंदी में कविता, इंग्लिश में पोयम और उर्दू में शायरी कहा जाता है। यह भाषा का ऐसा निराला रूप है जिसे लिखने में जितना मज़ा आता है उतना ही इन्हें पढ़ने और सुनने में आनंद की अनुभूति होती है। सीधे सपाट शब्दों में कही गई बात से ज्यादा खूबसूरत तुकबंदी में कही गई बात में होती है।  इस पुस्तक में मैंने मेरे मन के अक्स को आप सबके सामने प्रस्तुत करने की चेष्टा की है।  मेरी कविताओं के शीर्षक वैसे तो कुछ आम ही हैं, परंतु इन कविताओं की खासियत यह है कि इन कविताओं के माध्यम से गृहणियों व महिलाओं के मन में के हाल को दर्शाया गया है। उनके विचारों का अक्स आप इन शब्दों की माला में महसूस कर सकेंगे। कविताओं की श्रंखला कुछ सब टाइटल्स द्वारा विभाजित कर प्रस्तुत किया गया है जैसे: वंदन, मंथन, आत्म साक्षात्कार आदि। इन कविताओं की सोच ...

घर की धूल

Image
घर की धूल *चमकती धूप में जब कभी देखा अपनी हथेली को, कम नहीं पाया किसी से भी इन लकीरों को, *कुछ कमी तो रह गई फिर भी नसीब में मेरे, ठोकरें खाता रहा मन हर कदम तकदीर से! *हर सुबह लाती है मुझमें, इक नया सा हौंसला, हिम्मतें उठती हैं फिर  लेने  को कोई  फैसला, *ये भी करलूँ, वो भी  करलूँ, जी लूं अपने आप में, कोई मजबूरी या बंधन रोके ना अब राह में, *साथ चढ़ते सूर्य के फर्ज़ भी बढ़ता गया, जिम्मेदारियों  की लय में दिन भी ढलता गया, *मैं मेरे सपनों के भीतर यूं ही उलझी रही, शाम आते ही अरमानों का रंग भी उड़ गया *बहुत कड़वा है ये अनुभव सोच और सच्चाई का, दोष किसका है यहाँ पर, केवल अपने आप का, *क्यों ये सोचा कोई आकर मेरे लिए सब लाएगा, क्यों न सोचा मैं ही चलकर खुद ही सब ले लाऊँगी *कर रही हूं हद से बढ़ कर, मूल्य जिसका कुछ नहीं, मूल्य क्या कोई भरेगा, जो भी है अनमोल है, *फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है ।।