फस्ट इंप्रेशन (First Impression)
पंकज और दीया ने लव मैरिज की थी। जाहिर है दीया को नए परिवार में अरेंज मैरिज के मुकाबले कुछ ज्यादा एडजस्टमेंट करनी पड़ रही थी।
दीया की ननंद और पंकज की बड़ी बहन समझदार थीं, वे एक बहू और पत्नी की हर परिस्थिति को अच्छी तरह समझते हुए अपनी भाभी के साथ सहानुभूति एवं प्रेम का भाव रखती। सास ससुर दिया से बहुत सख्ती से पेश आते। अपनी बहू से उन्हें हर काम में परफेक्ट होने की उम्मीदें रहती। शब्दों में तो उन्होंने कभी कुछ स्पष्ट तौर पर कहा नहीं था, पर व्यवहार में कोई खास अपनापन भी नहीं था। सीधे स्पष्ट वार्तालाप में भी छोटे-मोटे टोन्ट करके दिया को शर्मिंदा या आगाह कर दिया जाता। दिया ने कभी पंकज से भी कुछ नहीं कहा, क्योंकि दिया पंकज के परिवार के खिलाफ कोई गलत बात करना नहीं चाहती थी । ससुराल को अपने से दूर और दूर महसूस करते-करते दीया ने अपने मन को समझा लिया था। किसी से कोई उम्मीद ना कर अपने काम में लगे रहकर हर वक्त चेहरे पर मुस्कुराहट लिए अपने दर्द को छिपाते गृहस्थी की जिम्मेदारियों को समेटे, दीया अपनी जीवन धारा में आगे बढ़ती रही।
जैसे-जैसे वक्त बीतता गया और पंकज के माता-पिता बूढ़े होते गए वे अपने हर काम के लिए दीया, पंकज और उनके बच्चों पर निर्भर रहने लगे। दीया इतने सालों से सभी की सेवा बिना कुछ कहे किए जा रही थी। परिणाम स्वरूप परिवार के सभी लोग मन से दीया को प्रेम और सम्मान देने लगे।
दीया के मन में अपने सास-ससुर के प्रति सम्मान तो था, पर वह मन से उन्हें कभी अपना नहीं पाई।
क्योंकि जब वह इस परिवार में नई थी और उसे सांत्वना, प्रेम एवं सहयोग की आवश्यकता थी तब उनके कड़वे बोल और अंचाही बातों ने दीया के मासूम मन को बहुत ठेस पहुंचाई थी।
उस समय जब उसे गृहस्थी की कोई खास समझ भी नहीं थी, और प्रेम विवाह करने के कारण वो पीहर से भी दूर हो गई थी। तब दीया को अपनी सास से मां की तरह प्रेम की अपेक्षा थी और ससुर से पिता की तरह संरक्षण की आशा थी, उस समय उन्होंने अपने व्यवहार से दीया को पूर्णतया अकेला छोड़ दिया था। परिवार में आई नई सदस्य के साथ कम से कम इतना संयम से पेश आना चाहिए, इतना समय दे देना चाहिए कि वह भी अपनी नई दुनिया में आराम से अपनी जगह बना सके। लड़की से औरत होने के इस सफ़र को अपनाकर अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी का बोझ उठाने लायक हो पाए। उस कठिन समय में जो इंप्रेशन परिवार के लोग बनाते हैं वही सारी उम्र बहु के साथ रहते हैं। ऐसा भी नहीं है कि समय के साथ मन बदला नहीं जा सकता पर फिर भी चोट खाया हुआ मन सारी उम्र एक अजीब सी टीस की तरह चुभता रहता है।
आशा है आपको मेरी कहानी का सार पसंद आया होगा कृपया अपने कॉमेंट और लाइक द्वारा मेरे साथ बने रहें।
धन्यवाद।
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