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Showing posts from 2018

My Story : "विज्ञान का सुख या प्रकृति का आनंद"

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लघु कथा   "निशा चाय बन गयी क्या ?" राकेश ने अखबार से नजर हटाकर कहा। "नहीं आज अच्छा मौसम लग रहा है, बादल भी है और मिट्टी की महक भी है लगता है पानी बरसेगा इसलिए पकौड़ी बना रही हूँ। बना दूँ क्या? चाय में थोड़ी देर लगेगी।" निशा ने कहा।  "नेकी और पूँछ पूँछ ये भी कोई पूँछने की बात है" और वह अखवार पढ़ने में मग्न हो गया।  उधर निशा नाश्ता तैयार करने में लग गयी। तभी बादलों के गरजने की आवाज तेज हुई और पानी जोरों से बरसने लगा। जैसे ही बारिश की ठंडी हवा अखबार को धकेलती हुई राकेश के चेहरे को छूने लगी तभी राकेश अखबार टेबल पर पटक कर बालकनी की ओर दौड़ा।आज बाहर का नजारा बेहद सुंदर था। हालाँकि बारिश पहली बार नहीं हो रही थी, हर बार की तरह उतनी ही आकर्षक थी, पर आज छुट्टी थी और दुनिया भी कामों से दूर मन आजादी से मौसम का आनंद ले पा रहा था। धरती पर पड़ती बूँदें ऐसी लग रही थी मानो, बिरह में तड़पती प्रेयसी ने अपने पिया के लिए बाहें फैला दी हों। पेड़ों पर पड़ती बूँदों का अलग ही संगीत था। जैसे बारिश की ताल पर पौधों की पत्ती पत्ती नृत्य कर रही हो। हर पत्ता आईने की तरह चम...

Mom Feels :(Positive Mind Mapping)

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  Positive Mind Mapping    अक्सर रात को नींद से लड़ते हुए, मैं और मेरी खामोशी बहुत सी बातें करते हैं। कभी कबार तो लंबी चर्चा  हो जाती है, तो कभी बहस ही छिड़ जाती है। Ha Ha... फिर किसी एक बात पर राजी हो जाया करते हैं। पिछले दिनों हमारी चर्चा का विषय था कि मैं सारा दिन घर में सबसे ज्यादा काम करती हूं।  यह एक आम चर्चा का विषय है जिसे ज्यादातर ग्रहणीयाँ महसूस करती हैं। आँख खुलने से लेकर रात को सोने तक का एक टाइट शेडूल निभाते-निभाते हम थक जातीं हैं और बदले में जब कुछ भी ऐसा नहीं होता या मिलता जिसे देख कर अगले दिन फिर खड़े होने की हिम्मत मिल सके, तो ऐसे में अमूमन हम गृहणियों का मन टूट जाता है और शरीर साथ छोड़ने लगता है। चलो आपको जोक सुनाती हूँ: लड़का - तुम लडकियां विदाई के समय             इतना रोती क्युं है? लड़की - जब तुम जाऔगे ना           बिना सॅलेरी के दुसरों के घर           काम करने तब तुम भी रोओगे। हा हा हा ************************************  मेरे लेखन में...

"काव्य कथा" (साइकल ज़िन्दगी की !!)

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क्यों खामोश हूं मैं? 1 दिन बड़े प्यार से मेरी खामोशी ने मुझसे पूछा, क्यों ऐसा चुपचाप हुआ मन? क्यों खामोशी का साया है? मन ही मन में फिर खामोशी से बात हुई तो एक किस्सा था उसने सुनाया।  याद कर कितने अरमानों से मां बाबा ने एक साइकिल था तुझे दिलाया, यह साइकल जिंदगी की है !  नाम यह देख कर तुझे थमाया चलानी ये तुमको ही होगी, मदद भले हम कर देंगे, खुद ही जोर लगाना होगा, संतुलन भी रखना होगा, कोई सहारा साथ न होगा, गति भी तुमको तकना है उड़ाकर मन के गुब्बारे, मैं उड़ी चली फिर साइकिल पर जोर पैडल पर देते देते, मजे लेती थी हर पथ पर यूं ही गुजरे साल कई, मैं कभी नहीं खामोश रही चली जाती थी मेरे दम पर साइकिल मेरी जिंदगी की मेरे दम पर? हुsssss समय की धारा ने क्या बोलो, कभी किसी को बख्शा है? राह हमेशा समतल होगी, ऐसा तो नहीं होता है जीवन की पथरीले पथ पर, जब साइकिल के चक्के घूमे, मां बाबा का साथ भी छूटा और चक्के भी पिचक गए।  दुनिया की इस भीड़ में, मैं ही मैं से बिछड़ गई, उलझ गई फिर जीवन में और साइकल मेरी कोने में थी खड़ी। पूछा मैंने फिर खामोशी से:...

2कविताऐं "सपने"

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बीते कल के सपने  मेरे वो सपने जुड़े थे तुमसे तुम्हीं से मेरा ह्रदय जुड़ा था  तुम्हें जो पाया मन उड़ चला था  तुम्हीं से मेरा हर आसरा था  पर तुम्हें था प्यारा यह जहां सारा  ना मिल सका मुझे तुमसे सहारा  मैं छुप गई फिर निज दाएरों में  और छोड़ बैठी सपने सजाना फिर वक्त बदला नया दौर आया  मैंने भी जाना खुदी का फ़साना  यही, के यहां हमको जीना है अकेले  उठो और अपने सपने समेटो  नए तौर से इनको फिर से सजा लो  चलो! चलो! चलो! अब रुको मत!!  बस चलते ही जाओ।। मेरा सपना खुली नज़र का मेरा ये सपना,  बना रही हूं मैं एक घरौंदा  जहाँ सुनाई दें रहे हों ताने, कोई भी अपना ना मुझको माने ज़रा तो सोचो गुज़र हो कैसे उन महलों में मेरे अह्न की  हैं तो बहुत घर मेरे जहाँ में   बड़े जतन से जिन्हें सजाया पर किसी ने बोला तुम हो पराई किसी ने पूछा कहाँ से आई  इन जिल्लतों का बोझ है मन पर कुछ कर गुज़रना है अपने दम पर  कब तक रहूंगी मैं बोझ बन...

Mom Feels: "Scores of Blessings" (दुआओं की अंक तालिका)

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Scores of Blessings (दुआओं की अंक तालिका)   कभी सोचा है, अगर बच्चों को भगवान, आध्यात्म और दुआओं का मतलब समझाना हो तो? वह भी आजकल के बच्चों को जो हर बात पर लॉजिक ढूंढते हैं तो क्या कहकर समझाएंगे। मैं अपनी बेटी को कई समय से दुआओं के बारे में समझाने की कोशिश कर रही थी।  बड़ों की सेवा करने से, भगवान का नाम (जाप या प्रार्थना) करने से और सभी को सम्मान देने सेे दुआएं मिलती हैं। उन दुआओं से हमें हर काम करने मेें प्रभु जी से बहुत मदद मिलती है। एक 6 से 8 साल के बच्चे को यह बात समझाना बहुत मुश्किल है। ये बात तो बड़ी उम्र के समझदार लोगों को भी समझाना मुश्किल होता है। कई बार कई तरह की बातें करने के बाद भी जब मुझे लगा कि अब भी उसे कुछ खास समझ नहीं आ रहा और मैं अपनी बेटी को यह समझा नहीं पा रही हूँँ की हमारा व्यवहार और ईश्वर के आगे की गई प्रार्थनाओं का हमारे जीवन में कितना महत्व है।  मेरे लिए भाषा का सही  प्रयोग एवं आपसी व्यवहार बहुत मायने रखता है। पिछले कई समय से मैं अपनी बेटी के व्यवहार में कुछ अल्हड़ता एवं भाषा में कुछ क्रूरता महसूस कर रही थी, इसलिए उ...

लघु कथा: "जल सेवा"

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जल सेवा हर साल गर्मियों की छुट्टियों में हज़ारों लोग रेल यात्रा करते हुए भीषण गर्मी का प्रकोप झेलते हैं। ऐसे में यदि शीतल पेय जल मिल जाए तो कहना ही क्या। पिताजी और उनकी मित्र मंडली सह परिवार 1मई से 30जून तक रेलवे स्टेशन पर 24 घंटे की प्याऊ लगाते थे। शाम 6 से रात्री 12 बजे तक की ट्रेनों पर जल सेवा के लिये बारी बारी मंडली के सदस्य ड्यूटी देते। बाकी सारा दिन कुछ लड़कों को आय पर रखा जाता। दिन भर सभी को अपना कर्म स्थल जो सम्भालना होता था। बड़े बड़े स्टील के ड्रमों में कप्पड़ छान कर पानी भरा जाता, बर्फ की सिल्लियाँ आतीं। हेण्डल वाले रामझारों एवं जगों से पानी पिला जाता। बोतल भरने के लिये कीप का प्रयोग होता। हम बच्चों को बहुत मज़ा आता था। जैसे ही ट्रेन का अनाऊन्समेन्ट होता हम सब सेवादार अपना अपना पात्र पानी से भर कर तैयार हो जाते और गाड़ी के प्लेटफाम पर आते ही ठंडा पानी पीलो, ठंडा पानी भरवालो की आवाज़ें लगा लगा कर यात्रियों की जल सेवा करते। बहुत आनंदमय लम्हें थे वो। बाल्यावस्था में शायद इसका  मूल्य हमें पता नहीं था। और आज मूल्य जानते तो हैं पर ऐसा कुछ करने का सोचते भी नहीं हैं...

संतान सुख

संतान सुख  नीले आसमां के पार जो भगवान रहता है  उसने बच्चों में खुद ही को जीवंत भेजा है  कहीं राधा भेजी है तो कहीं कान्हा भेजा है औलाद जैसा कीमती खजाना भेजा है  पुत्र और पुत्री का होना भाग्य पर निर्भर सही रीत दोनों के जन्म की एक ही विद्युत रही दोनों ही है अंश माता और पिता के स्नेह का कौन है वह साहसी जो प्राण तरीके ले सका बेटा बेटी के नियम में वर्गीकरण हो क्यों भला लड़की करे सब काम दिन भर लड़का केवल शान का बुद्धि बल सब एक सा है अंतर है आकार का बच्चों को समतुल्य मानव धर्म ही इंसान का ...

बच्चे की बोली जैसे कुंए की आवाज़

बच्चे की बोली जैस कुंए की आवाज़  बच्चों को जन्म देना और उनकी तन्दुरुस्ती का ध्यान रखना मात्र ही तो परवरिश नहीं। माता पिता के लिए बच्चे के और भी जरूरी जिम्मेदारी है उन्हें अच्छा इन्सान बनाना। यह एक सतत प्रक्रिया है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है उसे कई संस्कार सिखाए जाते हैं। बच्चों में संस्कार माता पिता के अलावा सभी परिवार जनों की भी जिम्मेदारी है। यदि बच्चा समाज में ठीक तरह विचरण न कर सके तो यह भी परिजनों की ही कमी का परिणाम होगा। समाज में रहने के बहुत से नियम है और एक नियम भाषा का भी है हमें अपने बच्चों को सही तरह से बोलना भाषा का सकारात्मक इस्तेमाल करना सिखाना चाहिए और इसे सिखाने के लिए अलग से कोई स्कूल या क्लास की आवश्यकता नहीं होती। हम जिस तरह रोज आपस में बातचीत करते हैं उसी से बच्चे सीखते हैं। एक नवजात शिशु को क्या पता कि उसे हिंदी, इंग्लिश या कोई अन्य भाषा बोलनी है वह तो अपने परिजनों की बातचीत से ही भाषा को अपनाता है मम्मी-पापा, आई-बाबा या मॉम-डैड यह सब अपने आसपास की भाषा से ही तो सीखता है ना। तो सकारात्मक भाषा और नकारात्मक भाषा का प्रयोग भी निश्चित तौर पर वह अपने परि...

फस्ट इंप्रेशन (First Impression)

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फस्ट इंप्रेशन             पंकज और दीया ने लव मैरिज की थी। जाहिर है दीया को नए परिवार में अरेंज मैरिज के मुकाबले कुछ ज्यादा एडजस्टमेंट करनी पड़ रही थी।           दीया की ननंद और पंकज की बड़ी बहन समझदार थीं, वे एक बहू और पत्नी की हर परिस्थिति को अच्छी तरह समझते हुए अपनी भाभी के साथ सहानुभूति एवं प्रेम का भाव रखती। सास ससुर दिया से बहुत सख्ती से पेश आते। अपनी बहू से उन्हें हर काम में परफेक्ट होने की उम्मीदें रहती। शब्दों में तो उन्होंने कभी कुछ स्पष्ट तौर पर कहा नहीं था, पर व्यवहार में कोई खास अपनापन भी नहीं था। सीधे स्पष्ट वार्तालाप में भी छोटे-मोटे टोन्ट करके दिया को शर्मिंदा या आगाह कर दिया जाता। दिया ने कभी पंकज से भी कुछ नहीं कहा, क्योंकि दिया पंकज के परिवार के खिलाफ कोई गलत बात करना नहीं चाहती थी । ससुराल को अपने से दूर और दूर महसूस करते-करते दीया ने अपने मन को समझा लिया था। किसी से कोई उम्मीद ना कर अपने काम में लगे रहकर हर वक्त चेहरे पर मुस्कुराहट लिए अपने दर्द को छिपाते गृहस्थी की जिम्मेदारियों को समेटे, दीया अपनी जीवन...

मेरी बड़ी सहेली "My Elderly Friend"

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मेरी बड़ी सहेली           जीवन में कभी किसी मोड़ पर कुछ ऐसे लोग मिल जाते हैं, जो आपके दोस्त और बहुत अच्छे सलाहकार बन जाते हैं। जिन मसलों पर हम अक्सर परेशान हो जाया करते हैं और कोई राह नहीं मिल पाती, तब ऐसे लोग आपको सही राह दिखाने में मदद करते हैं। वो किसी भी उम्र, देश या समुदाय के हो सकते हैं। उनकी बातों व उनके अनुभवों से हमें सकारात्मक रहा मिल  पाये यही सबसे ज़रूरी बात है। बात उन दिनों की है जब हम कोलकाता में रहते थे। एक शाम मेरी डोरबैल बजी सामने एक  टॉल, स्लिम जीन्स टी-शर्ट पहनी एक लड़की खड़ी थी। पूछने पर पता चला कि वे आज ही हमारी बिल्डिंग में शिफ्ट हुए हैं और केयर टेकर ने उन्हें हमारे बारे में बताया कि हम भी पंजाबी हैं।              हमने कुछ बात चीत की तो पता चला कि उनके पति भारतीय सेना में हैं और दो बेच्चे हैं और दोनों काफ़ी बड़े। उन्हें देख कर कोई भी उनकी उम्र का अन्दाजा नहीं लगा सकता।          देखते ही देखते हम दोनों में एक अच्छा सामन्जस्य बन गया। हम एक ही बिल्डिंग में थे ...

मेरी कहानी मेरी जुबानी

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मेरी कहानी मेरी जुबानी  मुझे पता है मैं कुछ खास नहीं अभी नादान सही  शब्दों के खेल से अब तक अनजान सही जिस गुलिस्तां में हजारों गुणों की महफिल है  मेरा वजूद उस गुलजार में छोटा ही सही  छोटी सी उम्र में सुनी थी जो गजलें कभी  कम शब्दों में बड़ी बात अच्छी लगती थी  यूं तो हर वक्त फ्री रहती थी मैं लोगों से  अपनी छुट्टियों से हंसती हंसाती रहती थी  पर सच यह है की तनहाई सदा भाती थी मुझे  अपनी ही संगत में मजा बहुत आता था  रात के अंधेरों में खुले आसमान तले  तारों को निहारती सन्नाटों की धुन पर शब्दों  को कागज पर नचाया करती  कभी हॉस्टल की खिड़की से तो कभी बगीचे में अकेले बैठकर  कविताओं को पन्नों पर छापा करती  पड़ी थी पहली कविता शरद पूर्णिमा की महफिल में  उस रात चांद गजब का सुंदर था  मेरी  आंखें भी चमक उठी थी उस पल  जब हर कोना तालियों से गूंजा था  बड़े हुए तो हाथों ने जिम्मेदारी की डोर कुछ इस तरह थामी  खो गई कलम मेरी और सोच छुप गई...

बचपन

बचपन आज मेरे बचपन से पुनः मेरी बात हुई  कैरम के गेम में फिर मुलाकात हुई  सिखा रही थी मैं अपने बच्चों को गेम ये  किसी तरह करना है स्क्रीन से परे इन्हें  गर्मियों की छुट्टियों में करें बड़ा काम ये  मिला दे इन बच्चों को बीते सब खेलों से  इंडोर आउटडोर गेम्स की है बड़ी लंबी लाइन   आओ खेलें और रहें फिट एंड फाइन  Cartoons or web gamesतो रोग बढ़ा दे नन्हीं नन्हीं अंखियों पे चश्मे चढ़ा दें  बुरा नहीं है कुछ भी सब कुछ है अच्छा  बैलेंस बनाकर चलना है बच्चा थोड़ा टाइम बच्चों को हमें देना होगा वरना इन प्यारों को बहुत सहना होगा

मां

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मां  रिश्तो के तो नाम कही है  पर मां होना आसान नहीं है  अपना हर एक ख्वाब भुला कर  खुश रहना आसान नहीं है  एक एक काम है मां के जिम्मे  समय सारणी सख्त बड़ी है  हर पल काम में उलझे रहना  सज्जनों आसान नहीं है  माना यह एहसान नहीं है  किसी पर यह इल्जाम नहीं है  पर अंतर्मन की अभिलाषा को  भुला पाना आसान नहीं है  घर छोड़ो तो घर बिगड़ेगा  मन तोड़ो तो मन बिगड़ेगा  दोनों को समेट के चलना  यह भी तो आसान नहीं है  सबसे कठिन तो तब लगता है  जब कोई नहीं समझ पाया है  कैसे मां ने पूरी की है  हर रिश्ते की जिम्मेदारी  कर कर के भी नाम न मिलना  हक्का वह सम्मान न मिलना  हंस कर सब कुछ डालते रहना  बिल्कुल भी आसान नहीं है  बिल्कुल भी आसान नहीं है

मेरा चांद

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मेरा चांद  अक्सर मेरी खिड़की से झांक कर  कुछ फुसफुसाता है मेरा चांद  आधी अंधेरी रात से छुपता छुपाता  चांदनी मेरे मुख पर बिखर जाता है मेरा चांद  मुझसे मेरी ही मुलाकात करा कर  अपने साथ खूब हंसता हंसाता है मेरा चांद  मैं भी मायूसी में अमूमन मैं भी मायूसी में अमूमन  उसी की आगोश में छुप जाया करती हूं  उसी के शीतल स्पर्श में रात भर बतियाया करती हूं  कह देती हूं बेझिझक सब हाल दिल का  यह मुश्किल है, यह कशमकश, यह जद्दोजहद और यह तन्हाई मुस्कुराकर चांद भी कुछ यूं मुझे संभाल लेता है  मेरी आंखों से टपकते आंसुओं को शबनम  सा पलूस कर  मीठी बाजार से बालों को सहलाता हुआ  अपनी कहानी से जिंदगी का फ़लसफ़ा समझाता है  कहता है कि रोज घटता-बढ़ता मैं कितना कुछ कहता हूं  और जिंदगी के रास्तों पर यूं ही चलना सिखाता हूं  ऊंची नीची राह की पगडंडियों पर  मुस्कुरा कर आगे बढ़ते रहना सिखाता हूं   चाहे खुद तुम ना भी हो कोई हस्ती  सूरज की रोशनी से...

hindi kavita: अक्सर इक सवाल सा…….

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अक्सर इक सवाल सा……. पूछा है जिंदगी से यह सवाल कई बार  आखिर मुझे है किस बात का इंतजार जिंदा हूं मैं क्योंकि सांसे है बर्करार पर जज्बातों के भीतर घुटन क्यों है बेशुमार क्यों जिए जा रही हूं बेमक़सद दिन-रात  गर नहीं है कोई मंजिल-2  तो क्यों खुश नहीं होता मन हकीकत के साथ क्यों उलझते हैं जहन में अनेकों सवाल क्यों नहीं मिलता इन सवालों को जवाब कारवाँ -ए -ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं, ये किया नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वो रहा नहीं सभी सवालों का बस एक ही है जवाब ज़िन्दगी जीना है तो रोमांच मन में उतार वक्त बहुत कम है हम सबके पास मिला है जो भी वो नेमत है रब कि सवालों को छोड़ और जीने की ठान रास्ता खुद ब खुद निकल आएगा इक रोज़ वक्त से पहले और नसीब से ज्यादा किसको मिला है यह सोच ।।

hindi kavita:- प्यार क्या है कैसा होता है

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प्यार क्या है कैसा होता है  ये शब्दों में कैसे बांधूं? यह एहसासों का सागर है और राहत की धारा जैसा है प्यार लड़कपन में, चहकती चिड़िया सा जो आंखों से दिल में उतरता है एक दूजे की आहट भर से दिल पंख पसारने लगता है प्यार विवाह के बाद ज़रा ख़ारा सा हो जाता है अपने दायित्वों में उलझा ये कुछ भी समझ नहीं पाते हैं पर प्यार तब भी था जब रातों को लंबी बातें करते थे प्यार अब भी है जब रातों में बारी-बारी से सोते हैं प्यार तब भी था जब एक दूजे को जानू जानू कहते थे प्यार अब भी है जब सुनो जी कहकर बस काम की बातें करते हैं इन सब के चलते भी प्यार पल पल गहरा होता है क्योंकि, यह एहसासों का सागर है और राहत की धारा जैसा है प्यार बुढ़ापे में सबसे गहरा और कीमती सा हो जाता है जब धुंधलाई सी नजरों में बस एक सहारा दिखता है और एक दूजे के साथ में ही रब जैसा आलम मिलता है तब सारी दुनिया भूल के बस इक दूजा की परवाह करते हैं क्योंकि यह एहसासों का सागर है और राहत की धारा जैसा है।।

मंजिल

  मंजिल यूँ ही नहीं मिलती राही को       जुनून दिल में जगाना पड़ता है, पूछा हमने ये हर शै से कि,       सफर में क्या क्या होता है पूछा चिड़िया से हमने कि,        ये घोंसला कैसे बनता है? वो बोली दम भरकर इक पल कि,        तिनका तिनका उठाना पड़ता है। माँ से पूछा हमने इक रोज़ कि,       ये बालक कैसे पलता है? नम करके आँखें वो बोली,      अपने लहू से सींचना पड़ता है। चींटी का सफर भी कहाँ कम है        गिर गिरके उठना पड़ता है किसान को भी निज खेतों में        अग्नि सा जलना पड़ता है मंजिल यूँ ही नहीं मिलती राही को,       जुनून दिल में जगाना पड़ता है।।

नारी शक्ति को दर्शाति कविता : तुम बिन

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मैं जी नहीं पाऊँगी तुम बिन हाँ, जी नहीं पाऊँगी तुम बिन चाहे रिश्ते हजार मिल जाए पर साथ न कोई भी तुम बिन चाहे नाम अनेकों पड़ जाए, पहचान नहीं मेरी तुम बिन चाहे काम पहाड़ से बढ़ जाए पर शक्ति नहीं होती तुम बिन चाहे वक्त बहुत कम रह जाए, पर मूल्य नहीं मेरा तुम बिन ये तय है, मेरा अनुभव है मैं जी नहीं पाऊँगी तुम बिन तुम, कौन हो तुम? तुम मेरी हस्ती का कारण हो तुम मेरा स्वाभिमान भी हो तुम मेरे अंदर देख रही प्रकाश पुंज की ज्वाला हो मैं नारी हूं और शक्ति भ,  तुम मेरा आत्म संबल हो तुम मेरा संयम कोष भी हो और ममता की नौ निधी धारा भी तभी…… चाहे कोई साथ ना रह पाए, पर साथ मेरे तुम हो हर क्षण चाहे युद्ध अनेकों हो जीवन में, पर स्नेह तुम्ही से है हर क्षण चाहे कोई पुकार न सुन पाए, तुम सुनते रहते हो हर क्षण चाहे मन ना कहीं बहल पाए, दिल को समझाते तुम हर क्षण तो ये तय है, मैंने देखा है मैं जी नहीं पाऊँगी तुम बिन हाँ, जी नहीं पाऊँगी तुम बिन  

हिन्दी कविता "आस"

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आस जिंदगी कठिन और जटिल लगती है मुझे, हर दिन, नई चुनौती लिए खड़ा है तन कर। दिलो दिमाग अब थकने से लगे हैं मानो चेहरा भी मेरी दास्ताँ सुनाता है।       जो चाहा, जब चाहा पाने वाली, मैं;       अब हर चाह पर काँपने सी लगती हूँ       सोचती हूँ, जिसे दिल दिया था कभी       अब, उसी से सोच के बात करती हुं। जागते सोचते गुज़र गईं कई रातें पर सोचा क्या? ये बात अब भी बाकी है        हर वादा हर बात झूठी है यहाँ        कोई नहीं है जो इन्हें निभा पाए        सब की ज़रूरतें जुड़ी हैं मुझसे        मेरी ख्वाहिशें क्यों बेगानी हैं सोच और हकीकत कि तना तनी में- देखो, उलझने रोज़ गहरी होती हैं         अपना आसमान दूर;         बहुत दूर है अभी,         पर चाह प्रबल और आस अभी बाकी है।।

हिन्दी कविता "उमंग"

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• उमंग नई सुबह की नई किरन ने, नई सोच को ताकत दी है, नए ज़माने कि इस लहर में नई उमंगों को राह दी है .. और भी रहें तकी थी हमने, कोशिशें भी हज़ार कीं थी मगर वही है यहाँ सिकंदर, प्रभु  कि जिस पर नज़र पड़ी है समय की धारा बड़ी प्रबल है, कोई भी यूँ ही न तर सका है. पर जोश अपना भी कहाँ कम है, रोज लड़े है, ज़माने भर से कभी तो मिलेगी मुझे वह किश्ती, जो पार तक मेरा साथ देगी मुझे भी अपना आप पा कर सुकुं मिलेगा फिर झोली भर कर .....

विद्या दान

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विद्या दान देश भक्ति का अर्थ हथियार लेके बॉडर पर लड़ना ही है क्या? र्कान्ति का मतलब नारेबाज़ी और अनशन है क्या? ये तो जज्बे की बात है, जब इनसान का हृदय चितकार करे और समाज को अपने होने का सबूत देते हुए निस्वार्थ भाव से कुछ दान करे तब शायद कृान्ति आए और वही सच्ची देशभक्ति हो। एक दिन रामा पापा समस्त परिवार को घुमाने के बहाने हमारे शहर की हरिजन बस्ती में ले गए। स्वाभाविक था, हम सब हैरान थे। फिर लगा शायद उन्हें कुछ काम होगा। पर वे बोले चलो तुम लोग सामने मंदिर में जा के बैठो मैं अभी आया। फिर उन्होंने एक घंटी बजाई और आसपास की झोपड़ीयों से लोग- बूढ़े, जवान और महिलाएं मंदिर के आंगन में दरी बिछा कर बैठ गए। उन्होंने सभी को राम राम कह कर मंदिर की ताक पर रखी कॉपि़यां सभी में बाँट दी। सामने की दीवर पर रोलर बोर्ड टाँगा और सभी से अपने परिवार का परिचय करवाया। तब पता लगा की पिछले एक माह से पापा यहाँ पौढ़  शिक्षा शिविर चला रहे हैं। कई दिनों से वे ऑफिस से कुछ देर से आ रहे थे, पूछने पर भी कुछ खास नहीं बताते थे। उस दिन उन्होंने बताया कि रोज़ इस बस्ती के साथ वाली सड़क से वे ऑफिस जाते थे, उसी दौ...

Hindi poem "मरीचिका", The Mirage

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मरीचिका ******* •आसमां जितना भी दिखे, हाथों में समा सकता नहीं •आईने में अक्स: चाहे, मैं ही हूँ फिर भी छुआ जाता नहीं •ख्वाब जितने भी हों पलकों के खुलते ही, मिला करते नहीं •तमाम उर्म गुज़ार ली सीखने सिखाने में फिर भी यूं लगता है मानो अब भी कुछ आता नहीं •हंसते रहते है हम ज़माने के सामने हरदम सोचते है सब, कि शायद, रोना हमें आता नहीं •ऐ रब, कैसी ये अजीब रिवायत है तेरी जैसा दिखता है, वैसा कभी होता क्यों नहीं?

घर की धूल

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घर की धूल *चमकती धूप में जब कभी देखा अपनी हथेली को, कम नहीं पाया किसी से भी इन लकीरों को, *कुछ कमी तो रह गई फिर भी नसीब में मेरे, ठोकरें खाता रहा मन हर कदम तकदीर से! *हर सुबह लाती है मुझमें, इक नया सा हौंसला, हिम्मतें उठती हैं फिर  लेने  को कोई  फैसला, *ये भी करलूँ, वो भी  करलूँ, जी लूं अपने आप में, कोई मजबूरी या बंधन रोके ना अब राह में, *साथ चढ़ते सूर्य के फर्ज़ भी बढ़ता गया, जिम्मेदारियों  की लय में दिन भी ढलता गया, *मैं मेरे सपनों के भीतर यूं ही उलझी रही, शाम आते ही अरमानों का रंग भी उड़ गया *बहुत कड़वा है ये अनुभव सोच और सच्चाई का, दोष किसका है यहाँ पर, केवल अपने आप का, *क्यों ये सोचा कोई आकर मेरे लिए सब लाएगा, क्यों न सोचा मैं ही चलकर खुद ही सब ले लाऊँगी *कर रही हूं हद से बढ़ कर, मूल्य जिसका कुछ नहीं, मूल्य क्या कोई भरेगा, जो भी है अनमोल है, *फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है ।।

Hindi poem "ऐ मालिक "

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ऐ मालिक! ज्यादा नहीं, बस इतना करम करना आँखों में शरम रखना हाथों में धरम रखना अपनी मर्यादाऔं का ज़हन में अदब रखना ऐ मालिक! ज्यादा नहीं, बस इतना करम करना बढ़ते कदमों को पिछले से बेहतर रखना अच्छाई ना छूटे, ज़रा नज़र रखना किरदार ऐसा देना कि, पर्दा गिर भी जाए चाहे, पर , देर कर बजती रहें तालियाँ, इज्जत एसी बनाए रखना।। ऐ मालिक! ज्यादा नहीं, बस इतना करम करना।।

Hindi poem "Aksar ik Sawal sa"

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अक्सर इक सवाल सा……. पूछा है जिंदगी से यह सवाल कई बार  आखिर मुझे है किस बात का इंतजार जिंदा हूं मैं क्योंकि सांसे है बर्करार पर जज्बातों के भीतर घुटन क्यों है बेशुमार क्यों जिए जा रही हूं बेमक़सद दिन-रात  गर नहीं है कोई मंजिल तो क्यों खुश नहीं होता मन हकीकत के साथ क्यों उलझते हैं जहन में अनेकों सवाल क्यों नहीं मिलता इन सवालों को जवाब कारवाँ -ए -ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं, ये किया नहीं, वो हुआ नहीं, ये मिला नहीं, वो रहा नहीं सभी सवालों का बस एक ही है जवाब ज़िन्दगी जीना है तो रोमांच मन में उतार  वक्त बहुत कम है हम सबके पास मिला है जो भी वो नेमत है रब कि सवालों को छोड़ और जीने की ठान रास्ता खुद ब खुद निकल आएगा इक रोज़ वक्त से पहले और नसीब से ज्यादा किसको मिला है यह सोच ।।

A True Story "आत्म बल"

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आत्म बल सामान्यतः जब हम किसी को हाथ, पैर या अन्य किसी अंग के बगैर देखते हैं, तो उन्हें अपंग या अपाहिज मान लेते हैं। पर कई दफा इनसान की इच्छा शक्ति उससे वह करवा लेती है जो सही सलामत दिखने वाले भी नहीं कर पाते। मेरे पापा बचपन से ही अपने बाएँ पैर से विकलांग थे। एक दुर्घटना में उनकी हिप बोन टूट गई थी। अनेक इलाज के बाद अन्ततः उनका बाया पैर दाएँ पैर की तुलना में करीब 3इंच छोटा और कमज़ोर था। ये कहानी है 1990 की, जून का महीना जब भीषण गरमी की चिलचिलाती दोपहर में सुनसान रास्तों पर कोई कोई ही नज़र आता है। शनिवार का दिन था, पापा का ऑफिस 2:30 बजे बंद हो जाता था। उस दिन मम्मी को बाज़ार में कुछ काम था, टाइम पर सब खत्म करके वह भी सीधा ऑफिस पहुँच गईं थीं ताकी दोनों साथ ही घर लौट सकें। दोनों स्कूटर पर सवार अपने घर की ओर चल पड़े। सिविल लाइन्स कॉलोनी से गुज़रते हुए पापा ने सामने से एक 11-12 साल की बच्ची को देखा, जो घबराई सी दौड़ी आ रही थी और उसके पीछे एक बौराया सा बैल आवाज़ें निकालता चला आ रहा था। पापा ने आव देखा ना ताव स्कूटर साईड पे लगाया और बच्ची को अपनी ओर खींचा और मम्मी को बोल कर उसे सड़क के म...

Hindi poems on "Khwab"

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Khwab हमने बनाया था ख्वाबों का गुलिस्तां, जहाँ जस्बातों की सतह पर प्यार के गुल खिले थे अपनेपन और इज़्ज़त के दरख्तों पर सुकून के रसीले फल लदे थे महक रहा था गुलज़ार अरमानों का मोहबतों के झूले बंधे थे उन झूलों पर झूलती मैं उन झूलों पर झूलती मैं, अपनी हर खवाहिश कि नुमाइश करती, ऊँचे ऊँचे तेज़ भर्ती थी। अपने वज़ूद पर इतराती, अपना अक्स झील में देखा करती.... अरे ! उस झील का ज़िक्र क्यों छूट गया..... जिसके पानी में प्यार बहता था। वो प्यार जो अहम है  मेरा जिसमें मैं ही मैं झलकती हूँ प्यार ऐसा की जिसकी आघोष में मेरे सारे एब छुप गए हैं कहीं। ख्वाब तो ख्वाब हैं, हकीकत तो नही हकीकत इतनी खुशनुमा नही होती यहाँ सब पर मैं नही मेरा वज़ूद हारा सा, बेमाने सा अपनी ख्वाबों की टोकरी उठाये  भटक रहा है यहाँ वहां.... ....